भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)

भारत में राष्ट्रवाद का उदय अंग्रेज़ों के शासनकाल में हुआ, जब भारतीयों ने यह महसूस किया कि विदेशी शासन देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। धीरे-धीरे लोगों में एकता और आज़ादी की भावना विकसित हुई।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में चला असहयोग आंदोलन (1920–22) इस राष्ट्रवादी भावना का सबसे बड़ा उदाहरण बना। गांधीजी ने लोगों से ब्रिटिश वस्तुओं, स्कूलों और संस्थानों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आह्वान किया। इस आंदोलन ने किसानों, मजदूरों, छात्रों और महिलाओं तक को जोड़ दिया।

इसके बाद नमक सत्याग्रह (1930) और सविनय अवज्ञा आंदोलन ने पूरे देश को एक सूत्र में बाँध दिया। गांधीजी की “नमक यात्रा” अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ जन-आवाज़ बन गई।

भारत में राष्ट्रवाद केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी पाने का आंदोलन नहीं था, बल्कि यह समानता, भाईचारे और न्याय पर आधारित एक नए भारत के निर्माण का सपना भी था। यही भावना आगे चलकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता का कारण बनी और आज भी हमें एकता और देशभक्ति का संदेश देती है।

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