संस्कृत भाषा की सुंदरता उसके व्याकरणिक नियमों में निहित है, और संधि उन प्रमुख नियमों में से एक है जो शब्दों को आपस में जोड़कर भाषा को मधुर बनाती है। “संधि” का अर्थ है – “मिलन” या “संयोग”। जब दो अक्षर (या शब्द) आपस में मिलते हैं और उनके उच्चारण में परिवर्तन होता है, तो उसे संधि कहा जाता है।
संधि के तीन प्रमुख प्रकार माने गए हैं –
- स्वर संधि (Svara Sandhi) – जब दो स्वरों का मेल होता है, जैसे: राम + इश्वर = रामेश्वर।
- व्यंजन संधि (Vyanjana Sandhi) – जब व्यंजन आपस में मिलते हैं, जैसे: तत् + जन = तज्जन।
- विसर्ग संधि (Visarga Sandhi) – जब विसर्ग (ः) के बाद कोई स्वर या व्यंजन आता है और उसका रूप बदल जाता है, जैसे: गुरुः + आलयः = गुरुआलयः → गुरूालयः।
संधि का अभ्यास संस्कृत व्याकरण में अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे शब्दों की रचना, उनका अर्थ और उच्चारण – तीनों का सौंदर्य बढ़ता है। यह भाषा को अधिक सटीक और मधुर बनाती है। विद्यार्थियों को संधि के नियमों को समझने और उदाहरणों द्वारा अभ्यास करने से संस्कृत पढ़ना और लिखना दोनों आसान हो जाता है।